अफोंसो दे अल्बुकर्की
सेन्होर अफोंसो दे अल्बुकर्की | |
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पद बहाल 4 नवंबर 1509 – सितंबर 1515 | |
राजा | प्रथम मैनुएल |
पूर्वा धिकारी | फ्रांसिस्को दे अल्मीदा |
उत्तरा धिकारी | लोपो सोरेस दे अल्बर्गरिया |
जन्म | सन 1453 अलहांद्रा, पुर्तगाल की राजशाही |
मृत्यु | 16 दिसंबर 1515 (आयु 62) गोवा, पुर्तगाली भारत |
जन्म का नाम | अफोंसो दे अल्बुकर्की |
राष्ट्रीयता | पुर्तगाली |
बच्चे | ब्रास दे अल्बुकर्की |
व्यवसाय | एडमिरल भारत का गवर्नर |
हस्ताक्षर | |
अफोंसो दे अल्बुकर्की या कई बार अफोंसो दे अल्बुकर्क, गोवा का पहले ड्यूक (पुर्तगाली: Afonso de Albuquerque; अफांसो जे अल्बुकर्की]; सन 1453 - 16 दिसंबर 1515) एक पुर्तगाली सेनापति, एडमिरल और राजनेता था। उसने 1509 से 1515 तक पुर्तगाली भारत में राज्यपाल के रूप में अपनी सेवाएं दी थीं, जिसके दौरान उसने हिंद महासागर में पुर्तगाली प्रभाव को बढ़ाया और एक उग्र और कुशल सैन्य कमांडर के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बनाई।[1][2][3]
अल्बुकर्की ने उस त्रिउद्देशीय पुर्तगाली योजना को आगे बढ़ाया जिसके अन्तर्गत इस्लाम का मुकाबला करना, ईसाई धर्म का प्रसार करना और अपने मसालों के व्यापार को सुरक्षित रख एशिया में पुर्तगाली साम्राज्य की स्थापना करना शामिल था। अपनी उपलब्धियों के बीच, अल्बुकर्की गोवा को जीतने में कामयाब रहा और पुनर्जागरण काल का वो पहला यूरोपीय था जिसने फारस की खाड़ी पर धावा बोला, और लाल सागर में किसी यूरोपीय बेड़े की पहली यात्रा का नेतृत्व किया।[4] उसे आम तौर पर एक अत्यधिक प्रभावी सैन्य कमांडर माना जाता है, और "शायद इस युग का सबसे बड़ा नौसैनिक कमांडर"[5], अपनी सफल रणनीति से उसने हिंद महासागर से अटलांटिक, लाल सागर, फ़ारस की खाड़ी, और प्रशांत महासागर को जाने वाले सभी नौसैनिक मार्गों को बंद करने का प्रयास किया, और इस पूरे क्षेत्र को पुर्तगाली मार क्लॉसम में बदल दिया।[6] 1506 में उसे "अरब और फारसी समुद्र के बेड़े" का प्रमुख नियुक्त किया गया।[7]
वो ऐसे कई संघर्षों में सीधे तौर पर शामिल था जो हिंद महासागर, फारस की खाड़ी और भारत के तटों पर क्षेत्र में व्यापार मार्गों के नियंत्रण के लिए हुए थे। इन प्रारंभिक अभियानों में उसकी सैन्य प्रतिभा ने पुर्तगाल को इतिहास का पहला वैश्विक साम्राज्य बनने में सक्षम बनाया।[8] अल्बुकर्की ने 1510 में गोवा की विजय और 1511 में मलक्का पर कब्जा करने सहित कई लड़ाइयों में पुर्तगाली सेना का नेतृत्व किया।
अपने जीवन के अंतिम पांच वर्षों के दौरान, वो प्रशासक बन गया, जहां पुर्तगाली भारत के दूसरे गवर्नर के रूप में उसके द्वारा किए गए काम पुर्तगाली साम्राज्य की लंबी उम्र के लिए महत्वपूर्ण थे। उसने उन अभियानों की देखरेख भी की जिसके परिणामस्वरूप उसका दूत डुआर्टे फर्नांडीस थाईलैंड के साथ राजनयिक संपर्क स्थापित कर पाया, म्यांमार में पेगु के साथ, अंतोनिओ दे अबेरू और फ्रांसिस्को सेराओ के नेतृत्व में एक समुद्री यात्रा के द्वारा तिमोर और मोलुकास के साथ और राफेल पेरेस्ट्रेलो के माध्यम से चीन के मिंग साम्राज्य के साथ यूरोपीय व्यापार के लिए समझौता किया। उन्होंने इथियोपिया के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने में भी सहायता की[9][10][11], और सफ़ाविद राजवंश के दौरान फारस के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए।[12]
उसके पूरे करियर के दौरान, उसे "भयानक"[13], "सागरों का शेर", "महान", "पूर्व का सीज़र" और "पुर्तगाल का मंगल" जैसे विशेषण प्राप्त हुए।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Ooi 2004, पृष्ठ 137
- ↑ Stephens 1897, पृष्ठ 1
- ↑ Butt 2005, पृष्ठ 10
- ↑ Stevens 1711, पृष्ठ 113
- ↑ Ricklefs 2002, पृष्ठ 26
- ↑ Chisholm 1911
- ↑ "Albuquerque, Alfonso De". Encyclopædia Iranica (8) 1: 823–824। (December 15, 1985)।
- ↑ Erickson & Goldstein 2012
- ↑ Vilhena, Maria da Conceição (2001). "O Preste João : mito, literatura e história" [The Prester John: myth, literature and history] (PDF) (2 संस्करण). Universidade dos Açores. पपृ॰ 14–15. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0871-7664.
- ↑ Hespeler-Boultbee 2011
- ↑ Clough 1994
- ↑ Couto & Loureiro 2008
- ↑ Subrahmanyam 1998, पृष्ठ 365